घर
- Aditya Gupta
- Dec 28, 2022
- 1 min read
निकले थे घर से सपने पूरे करने
अब सपनों में भी घर याद आता है।
रहते थे जहा सारे आपने
आज इस मतलबी दुनिया में वो घर याद आता है।
निकले थे घर से लेकर सपने हज़ार
सोचा ना था जिंदगी अकेली हो जाएगी लाचार।
करते थे जहा हम खाने में नखरे हज़ार
सोचा ना था रहना पड़ जाएगा मुझे बीन अन्न चार।
बीमार पड़ने पे जहा रहते थे लोग आस पास
सोचा ना था की अब काम लगने लगेगा खास।
छोटी छोटी उपलप्धियों में जहा मिलते थे तालियां हज़ार
सोचा ना था की खुशियां बांटने के लिए
अब लोग न मिलेंगे चार।
बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी जहा लगती थी आसान
बहुत ही प्यारा है मुझे वो मेरा घर आलीशान।
तो आओ अब घर की ओर लौटते हैं
बहुत हुआ पढ़ना और कमाना
आओ अब घर की ओर लौटते हैं।
बहुत हुआ मां को नाश्ते के लिए झूठ बोलना
आओ अब घर की ओर लौटते हैं।
बहुत हुआ इस भीड़ में अपनो को ढूंढना
आओ अब घर की ओर लौटते हैं।
Comments