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यादों का सफर

Shivam Poddar

गुजरता ये साल भी गुजर गया, उसका खयाल भी गुजर गया

ज़हन में जो यादें थी, यादें का कारवां भी गुजर गया

पन्नो के बीच मेरा अतीत भी गुजर गया ।

कुछ माँगता है, वजूद मेरा, तो कुछ मेरी तमन्ना है,

तमन्ना इतनी, की अब अपने वजूद के लिए जीना है,

और देखे तो ये महीना भी गुजर गया,

जिंदगी तो छोटी मांगी थी, जाने कैसे ये साल भी गुजर गया।

की राह देखते है लोग, नए साल आने की,

हम मैखाने के शराबी, शाम ढलने की,

और वजह ये नही कि खुशी है किसी बात की,

अपने दिखजाए कहीं, खुशी है इस बात की,

की नए साल में कई आदतें बदल गई,

लोगों से बातें बदल गई

और जिन्हे हम अपने पास बैठाना चाहते थे,

कम्बक्त उनकी मंजिलें बदल गई।

की शुरुआत अच्छी थी, इस साल की हमारे लिए,

जाने क्या सूझा, जो कलम उठा ली अपने लिए,

अब लिखने में ही शाम बीत जाती है,

शाम की बात थी, और खामोशी में राते बीत जाती है।

की महीने बीतते गए, हमारी जिंदगी, मौन चलती रही,

मौन अल्फाजों में, जिंदगी मानो कुछ कहती रही,

की शायद हमने सुनने में देर कर दी,

उस आवाज को पहचानने में देर कर दी।

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