आज मैं कुछ पुरानी बातें याद कर रही थी।
बातें जो कुछ मां से की थी
और कुछ पापा से।
कही तो बहुत सी बातें थी उन्होंने।
लेकिन सारी अल्फाजों में
बस एक ही सवाल गूंज रही थी।
की बेटा घर कब ए रही हो?
अब मैं उन्हें कैसे समझती की इस धरती
की रक्षा का प्रण जो मैने लिया है
उस में छुट्टियां कुछ कम ही मिलती हैं।
कैसे समझती उन्हें की मैने यहां
एक नया घर बना लिया है।
हां घर थोड़ा छोटा है।
सीधी छत भी नहीं हैं।
और सोने में थोड़ी दिक्कत आती है।
लेकिन जी लेती हूं मैं यहां अच्छे से।
कैसे समझती की इन वर्दियों में मैंने,
एक नया परिवार बनाया है,
जो जाने कब बिखर जाए।
लेकिन हम खुश रह लेते है साथ में।
आज फिर मां ने फोन किया था,
लेकिन मैंने उठाया नहीं इस ढर से
कहीं सारे राज न खोल दूं।
और इसलिए भी क्योंकि आज एक
खास जगह जाने की जल्दी थी मुझे।
तो बस बस्ता उठाया और वर्दी को सलामी
देते निकल गई मैं सफर पर।
आज रास्ते में किसी भी गली ने मुझे
घर की याद नहीं दिलाई।
आज शाम पंछियों को देख
मुझे नहीं, उन्हें मुझसे जलन हो रही थी।
आज रेल की पटरियों को देख ये नहीं सोचा मैंने
की काश ये पटरियां घर तक ले जाती।
आज सारे अगर और मगर मेरे खयालों में शांत बैठे थे।
क्यों?
क्योंकि आज में घर वापस जा रही थी।।
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