एक खत उस समाज के नाम लिखा है
जहां हर किसी ने उस मर्द को बुरा देखा है
माना थे कुछ जिन्होंने गलतियां की थी
लेकिन उन कुछ के कारण समाज ने हर मर्द को उसी नजर से देखा है
इस खत में कुछ छोटी छोटी बातों का ज़िक्र किया है
जिसे कभी न कभी देखा सबने होगा पर हर बार नज़रअंदाज़ किया है
हो सकता है मेरी बातें पसंद न आये आपको पर मैंने तो सिर्फ इस खत में एक मर्द का नज़रिया बयां किया है
की
रोना उसे भी आता है लेकिन वो कभी रोता नहीं है
बुरा उसे भी लगता है लेकिन वो कभी दिखाता नहीं है
गलती तो बस इतनी सी है कि वो एक लड़का है क्योंकि समाज की नजर में उसका दर्द , दर्द नहीं है
कुछ भी हो जाए लोगों के नज़र में गलती उसी की होती है
क्योंकि वो तो मर्द है ना जज़्बातों की कदर उसको थोड़ी न होती है
रोता वो भी है अपने बहन की बिदाई में
लेकिन आंसुओं से ज्यादा उसके कंधो की जिम्मेदारी ज़रूरी होती है
माना मिलती है उन्हें ज्यादा आज़ादी पर उसके साथ साथ जिम्मेदारी भी मिलती है
घर उन्हें ही संभालना है आगे जाके , कहीं न कहीं उनके दिमाग में ये बात ज़रूर चल रही होती है
वो अपनी माँ का बेटा ,
बहन का भाई ,
और बेटी का पिता भी है
अक्सर परिवार के लिए उसने अपनी जरूरते और इच्छाएं छिपाई भी हैं
पर फिर भी सिर्फ कुछ लोगों के कारण उन्हें ही गलत समझा जाता है
और गलती से उनकी आखो में आंसू आ जाये तो उन्हें कमज़ोर बोल दिया जाता है
माना हम घूमते है अपनी छाती चौड़ी कर कि जो होगा देख लेंगे
पर इसका ये मतलब नहीं की उन्हें दर्द नही होता है
ये खत उन सबके लिए है जिन्हें लगता है कि मर्द को दर्द नहीं होता
क्योंकि दर्द उन्हें भी होता है
और अगर बुरा लगा हो मेरी बातों का तो माफ करना लेकिन सच तो अक्सर कड़वा ही होता है
बहुत और बाते भी हैं जिन्हें दूसरे खत में बताऊंगा
एक मर्द का नज़रिया और भी अच्छे से दूसरे खत में दिखाऊंगा
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