जिसने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया,
उसे सुत पुत्र का नाम मिला,
जो था हकदार सिंहासन का,
उसको कांटो का मुकुट मिला।
जिस माता ने था जन्म दिया,
उसने गंगा में छोड़ दिया,
जो बचपन पलना था महलों मे,
वो संघर्षो में बीत गया,
पर नियत क्या है नियति की,
कब कौन उसे है जान सका,
बस श्रेष्ठ धर्म हित कर्मो से,
मानव कष्ट को पार सका।
तो उसने सारे सद्धर्म किये,
सारे उसने सत्कर्म किये,
वो धर्मज्ञ धीर वो दानवीर,
वो वीरो में था महावीर,
वो परम मित्र वो था विचित्र।
वो परम दयालु सूर्य पुत्र,
वो त्यागशील वो वचन सिद्ध,
अहा वो था अद्भुत चरित्र।
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