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Soumya Gauraha

कैसे इतना जल्दी वक़्त बीता

"" तुम ना हारे हालात से बदलना,

ना दूसरो की नुकीली बात से बदलना,

तुम अपनी चाहतों को,

जमाने की चाह से मत बदलना,

आज़ादी की उम्र में तुम,

अपना बचपन मत खोना। ""


शीर्षक: " कैसे इतना जल्दी वक़्त बीता "


मेरी सोच ने मुझसे एक सवाल पूछा,

मेरे सवाल ने फिर उसका जवाब ढूंढ़ लिया,

कैसे इतना जल्दी वक़्त बीता?

फिर समझ आया ये तो भौतिके का नियम ही है,

सब चीजें एक दूसरे से दूर जा रही हैं,

तब लगा आप सबके साथ चालू किये हुए,

किताब का आखिरी पन्ना लिखना जरूरी था,

आज चाहे कोई मुझे सुने पाए या न सुने पाए,

पर मेरा कहना ज़रूरी है ।


आज पीछे मुड़ कर हमारे बचपन में देखु ,

तो समझ नहीं आता,

मुझे समझ नहीं आता की,

कैसे पहले तारे पकड़ से दूर नहीं वे,

खुशबू जैसी मिट्टी में कैद हो जाती थी,

कितनी बार हम बेवज़ह ही पूरा भ्रमण कर आते थे।


पर आज,

पर आज जानते हैं,

हमारे और तारो की दूरी कितनी है,

बादलों की हकीकत,

धुल,कर्ण,वष्ण,संघानन,

उफ्फ कितना जानने लगे हैं हम।


कितना अनुभव, कितना संयम, कितना ज्ञान,

कितना सरल लगता था जीवन,

जब माँ, बाबा से तुतलाती ज़ुबान में हट करना,

और दोस्त के साथ घूमना,

नये अजनबी लोगो से मिलना और दुलार पाना,

सब कितना सही था।


तो हाँ मुझे नहीं पता,

मुझे नहीं पता कि इस अतरंगी दुनिया के सतरंगी रंग आप सब भूलेंगे कैसे,

जिस जगह और लोगों ने कितना कुछ सिखाया और अपनाया हो,

उसे भुलाएंगे कैसे?


क्योंकि ये सब ना,

ये दोस्त, ये लोग, ये इंजीनियरिंग का कोर्स,

कोई किताब का कागज़ नहीं,

जिसे आज शब्दों से सजाया,

और कल हाथों से हटाया,

ये तो पूरी एक किताब है,

जिसे हम चाह कर भी नहीं मिटा सकते। 


- सौम्या



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