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तुम लिखो

Soumya

तुम लिखो जब तुमको मन करे

तुम लिखो जब तुमको सब कुछ अंधेरा लगे

तुम लिखो जब दिमाग में तुम्हारे कुछ भी न चले

तुम लिखो जब बाहर तुम्हारे खिड़की से झांकती हवा मधम मधम बहे

तुम लिखो,

जब नींदें फनाह हो

दिल चाहे पागलपन या कोई दस्तूर लिखना हो

उस समय तुम जहा भी हो,

थम जाना, कुछ भी हो जाए, तुम कुछ न कुछ उस क्षण लिख जाना,

तुम लिखना जब लगे जो हो रहा है वो सही नहीं

तुम लिखना जब मन की कोई बात बाहर निकालनी हो, जो आज तक किसी से कही नही

तुम लिखना सूरज, चांद या चंद्रयान के बारे में

तुम लिखना अपने मां के हाथ के बने घर के खाने के बारे में

तुम बस लिखना

जब तुम्हारे हर किरदार तुमसे रूबरू हो जाए

जब किसकी भूख देख तुम्हारा मन सहम जाए

जब इतिहास के कोई पन्ने तुम्हे छीन बिन कर छोड़ जाएं

तुम तब लिखना

जब राजनीति मैं जनता की आवाज को तुमको रखनी हो

जब सबके हाथ तलवार उठी और अमन की बात तुमको करनी हो

जब दिमाग में सैलाब उठे जब भीड़ में होते हुए भी अकेले होने का एहसास रहे

तब लिखना तुम

और जब हाथ तुम्हारा कलम में बस थम जाए

शब्दों से काव्य रचना तुम्हारे दिलों दिमाग में बस जाए

तब समझोगे,

तब समझोगे, लिखने का हुनर

की जब कोई तुम्हारे साथ न होगा

लेने के लिए किसी के समक्ष कोई अल्फाज न होगा

बस कलम तुम्हारे साथ रहेगी

और ऐसे ही किसी समय में तुम लिखोगे

एक ऐसी कविता जो कवि होने का तुम्हे सम्मान दे जाएगी

काल चक्र की किताब में तुमको तुम्हारा स्थान दे जाएगी

तुम महफिल में रहो या ना रहो

वो हर महफिल में दोहराई जाएगी

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