यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
अर्थ: मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
महाकाव्य महाभारत भारत का पुरातन धार्मिक ग्रंथ है । संजय की दिव्य दृष्टि द्वारा संबोधित महर्षि वेद व्यास जी द्वारा लिखित ये ग्रंथ भारत के गौरवपूर्ण इतिहास का साक्षी है । महाभारत जैसे ग्रंथ में जो करुण–बोध है , वह मनुष्य के भीतर छोटे और बड़े धर्म के बीच छिड़ने वाले संघर्ष पर आधारित है । महाभारत पुरातन व आधुनिक दोनो समय में होने वाली आपदाओं और असलियत का स्वरूप वर्णन है । कुरुक्षत्र में श्री कृष्ण द्वारा कहे गीता ज्ञान के तत्त्व आजतक समाज के मार्गदर्शक रहे है ।
महाभारत 400 ईसा पूर्व और 200 सीई के बीच हिंदू धर्म के विकास पर जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और हिंदुओं द्वारा दोनों के बारे में एक पाठ के रूप में माना जाता है।धर्म (हिंदू नैतिक कानून) और एक इतिहास । लगभग 400 ईस्वी में अपने वर्तमान स्वरूप में दिखाई देने पर , महाभारत में एक केंद्रीय वीर कथा के चारों ओर व्यवस्थित पौराणिक और उपदेशात्मक सामग्री शामिल है , जो चचेरे भाइयों के दो समूहों, कौरवों (पुत्रों) के बीच संप्रभुता के संघर्ष के बारे में बताती है ।
महाभारत के गंभीर अध्येताओं के लिए तो इसमें कुछ भी नया नहीं है, लेकिन टेलीविजन पर दिखाई गई महाभारत की कथा को सच मानने वालों को इसे पढक़र काफी हैरानी हो सकती है। मसलन, शकुनि के चरित्र के बारे में आम धारणा यही है कि सब उसी का किया-धरा था। उसी ने दुर्योधन को उकसाया, लेकिन मूल संस्कृत के पाठ के आधार पर बताया है कि महाभारत की कथा में एक ऐसा मोड़ भी आता है, जब शकुनि भांजे दुर्योधन से कहता है कि पांडवों को उनका राज लौटा दो।
महाभारत परम ज्ञान के भंडार के साथ परिपूर्ण वास्तविकता पर एक अनूठा कटाक्ष है , जो पढ़े जाने पर मनुष्य को अपने अंतर्मन से भेंट कराता है तथा सही मार्ग प्रदर्शित करता है ।
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