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मैं हिन्दुस्तान बोल रहा हूँ

Ankan Bhatt

मैं हिन्दुस्तान बोल रहा हूँ,

कुदरत का हर रंग समाया है मुझे।

कहीं झेलम का वेग तो कहीं गोवर्धन का साया है मुझमें।

सर्दी, गर्मी, बारिश और ना जाने क्या-क्या,

मौला ने हर मौसम बनाया है मुझमें।


मौत के बीच जीवन का दीपक रखा है मैंने,

जंगों में जीत का स्वाद चखा है मैंने।

130 करोड़ उम्मीदों के साथ-साथ,

हिमालय भी सर पर उठा रखा है मैंने।


सिख, ईसाई, जैन, बुद्ध, हिन्दू, मुसलमान बोल रहा हूँ,

कभी गीता का श्लोक तो कभी आयत-ए-कुरान बोल रहा हूँ।

मेरा पैगाम यहाँ पर हर जगह फैलादो यारों,

मैं तुम्हारा हिन्दुस्तान बोल रहा हूँ।


उर्दू, कन्नड़, गुजराती, तेलगु, हिंदी भाषा हूँ मैं,

मैं ही वीणा, बांसी, ढोलक, मंजीरा, ताशा हूँ मैं।

2 साल 11 महीने 18 दिन में लिखी हुई,

दादा साहेब भीमराव की आलौकिक आशा हूँ मैं।


दुनिया को एक-एक चीज बेहतरीन दी है मैंने,

कहीं कोलकाता का रसगुल्ला तो कहीं बीकानेर की नमकीन दी है मैंने।

जब दुनिया मौत का आँचल ओढ़ने चली थी,

उसी दुनिया को जीवन की वैक्सीन दी है मैंने।


मंगल को पहली बार में चमकता उजाला हूँ मैं,

कहीं रात में माखन चुराता ग्वाला हूँ मैं।

कभी जख़म भरता पतंजलि और शुश्रुत हूँ,

तो कहीं सीना चीरता राणा प्रताप का भाला हूँ मैं।


कहीं मंदिर की आरती, मस्जिद की अजान बोल रहा हूँ,

कभी बिस्मिल तो कभी अशफ़ाक़-उल्लाख़ान बोल रहा हूँ।

ज़मीन का टुकड़ा नहीं, मैं विश्व पुरुष हूँ,

मेरी बात सुनो, मैं हिन्दुस्तान बोल रहा हूँ।

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