top of page
  • Ujjwal

मैंने देखा है

धड़कते, साँस लेते, रक्त चलते मैंने देखा है,

कोई तो है, जिसे खुद में फलते मैंने देखा है।


नववर्ष आरंभ हुआ,

यह देख चित्त भी मौन हुआ,

हँसते, नए ख़्वाब बुनते, खुद को देखा है।

कोई तो है, जिसे बदलते मैंने देखा है।।



निंदनीय व्यवहार को, खुद के दुष्प्रचार को,

आपसी संबंध को, खुद से होते द्वंद को,

मैंने खुदको खुद में ही जूझते देखा है।

कोई तो है, जिसे उभरते मैंने देखा है।।



नूतन मौसम, नूतन वर्ष,

नूतन रंग और नूतन हर्ष,

कितने झूठे वादों को, खुद से करते देखा है।

कोई तो है, जिसे खुद में फलते मैंने देखा है।।


5 views

Recent Posts

See All

コメント


bottom of page